- विज्ञान और गणित का शिक्षण खेलतमाशा जैसा भी हो सकता है। कक्षाओं में सीखीं विज्ञान की अवधारणाओं के आधार पर बच्चे खुद खिलौने भी बना सकते हैं। इससे न केवल जिज्ञासा और कौतूहल को नए पंख मिलते हैं, बल्कि इनोवेशन करने की क्षमता पैदा होती है। विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के मिशन में जुटे मनीष जैन ने जब आईआईटी दिल्ली में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल के आखिरी दिन वैज्ञानिक-विद्यार्थी संवाद सत्र में सॉफ्ट ड्रिंक पीने वाले स्ट्रॉ पाइप, साइकिल की तान (स्पोक) के टुक़डे, चुम्बक के टुक़डों, खराब हो चुकी कॉम्पैक्ट डिस्क, प्लास्टिक पाइप, मजबूत धागे, तांबे के तार, अखबार आदि सुलभ साधारण चीजों से न केवल खिलौने बनाकर दिखाए बल्कि, उनके पीछे के विज्ञान पर भी चर्चा की तो दिल्ली के विभिन्न स्कूलों के करीब 700 विद्यार्थियों ने जिस तरह उन्हें तालियों की लम्बी ग़डग़डाहट से सम्मान दिया, उससे स्पष्ट हुआ कि बच्चे किस तरह से विज्ञान पढ़ना चाहते हैं।
- वस्तुत: मनीष ने इन खिलौने के जरिये जादूगर जैसा रोमांच पैदा कर दिया। मनीष जैन आईआईटी-कानपुर से बीटेक हैं और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी कुछ अल्पकालीन कोर्स कर चुके हैं। बाद में अमेरिकी कंपनी सिनॉप्सिस में 10 साल कैलिफोर्निया और 8 साल बेंगलुरू में काम करने के बाद वे अब विज्ञान-शिक्षण में काम आ सकने वाले नए नए खिलौने खुद बनाने, उन्हें बनाना सिखाने के लिए स्कूलों में कार्यक्रम करने तथा शिक्षकों के लिए कार्यशाला आयोजित करने में लगे हैं।
अब तक वे करीब 1000 खिलौने बना चुके हैं। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि जल्दी ही केंद्रीय विद्यालयों के लिए वे कुछेक कार्यशालाएं करने जा रहे हैं। वे मानते हैं कि देश में विज्ञान शिक्षण को गतिविधियां आधारित करने पर जोर देना जरूरी है, इससे बच्चों को न केवल कांसेप्ट स्पष्ट होते हैं, बल्कि उनमें इनोवेशन करने की क्षमता पैदा होती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने माना कि देश में विज्ञान और गणित के शिक्षण का तरीका आमतौर पर ठीक नहीं क्योंकि इसे वे लोग अंजाम दे रहे हैं जिनकी न शिक्षण में रूचि है न बच्चों से प्यार है। खिलौना-आधारित विज्ञान लोकप्रियकरण की इस मुहिम में उतरने की प्रेरणा मनीष को आईआईटी के ही अरविन्द गुप्ता से मिली जिन्होंने विज्ञान और गणित के सिद्धांतों को स्पष्ट करने वाले टूलों के जरिये विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के काम की पहल की थी। वे इन दिनों पुणे में मुक्त गगन साइंस सेंटर का संचालन करते हैं।
विद्यार्थियों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने इस धारणा का खंडन किया कि जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड से स्वास्थ्य को खतरा होगा। उन्होंने बताया की किस तरह देश में हम लोग अभी भी आयातित जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड खा रहे हैं। 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा (सॉइल) वर्ष घोषित किया गया था। इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटूट के कृषि वैज्ञानिक डा देबाशीष चक्रवर्ती ने इस विषय पर अपनी प्रस्तुति में बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बढ़ रहा है, जिससे मिट्टी (मृदा) की गुणवत्ता भी प्रभावित हुयी हैं और वैज्ञानिकों के सामने अनुसन्धान के लिए यह नई चुनौती है। उन्होंने कृषि कर्म में पानी के कुशल इस्तेमाल की जरूरत पर भी जोर दिया।
कमल
बच्चे खेल खिलौनों से ज्यादा अच्छा सीख सकते हैं विज्ञान